Thursday, December 23, 2010

मैं  ने  पूछा  पहला  पत्थर  मुझ  पर  कौन  उठाएगा
आई  इक  आवाज़  की  तू  जिस  का  मोहसिन  कहलायेगा

पूछ  सके  तो  पूछे  कोई  रूठ  के  जाने  वालों  से
रोशनियों  को  मेरे  घर  का  रास्ता  कौन  बताएगा

लोगों  मेरे  साथ  चलो  तुम  जो  कुछ  है  वो  आगे  है
पीछे   मुद  कर  देखने  वाला  पत्थर  का  हो  जाएगा

दिन  में  हंसकर  मिलाने  वाले  चहरे  साफ़  बताते  हैं
एक  भयानक  सपना  मुझ  को  सारी  रात  डराएगा

मेरे  बाद  वफ़ा  का  धोका  और  किसी  से  मत  करना
गाली  देगी  दुनिया  तुझ  को  सर  मेरा  झुक  जाएगा

सूख  गई  जब  इन  आँखों  में  प्यार  की  नीली  झील  'क़तील '
तेरे  दर्द  का  ज़र्द  समंदर  काहे  शोर  मचाएगा

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