Thursday, December 23, 2010

Qateel Shifai

प्यास  वो  दिल  की  बुझाने  कभी  आया  भी  नहीं
कैसा  बादल  है  जिसका  कोई  साया  भी  नहीं

बेरुखी  इस  से  बड़ी  और  भला  क्या  होगी 
एक  मुद्दत  से  हमें  उस   ने  सताया  भी  नहीं

रोज़  आता  है  दर - ए - दिल  पे  वो  दस्तक  देने 
आज  तक  हमने  जिसे  पास  बुलाया  भी  नहीं

सुन  लिया  कैसे  खुदा  जाने  ज़माने  भर  ने 
वो  फ़साना  जो  कभी  हमने  सुनाया  भी  नहीं

तुम  तो  शायर  हो  'Qateel' और  वो  इक  आम  शख्श    
उस  ने  चाहा  भी  तुझे  और  जताया  भी  नहीं

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